पगारा बांध: ग्वालियर के पास छिपा है 90 साल पुराना ‘इंजीनियरिंग का हीरा’

Nitesh Patel
By Nitesh Patel 7 Min Read
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मध्य प्रदेश के मुरैना-ग्वालियर क्षेत्र में, आसन नदी के प्रवाह पर स्थित पगारा बांध केवल एक जलाशय नहीं, बल्कि 90 वर्ष से भी अधिक पुराना एक महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग स्मारक और इस कृषि-प्रधान क्षेत्र की आर्थिक जीवनरेखा है। पर्यटन की चकाचौंध से परे, इस बांध का वास्तविक महत्व इसकी संरचना, जल प्रबंधन क्षमता और क्षेत्रीय कृषि विकास में इसके अमूल्य योगदान में निहित है। यह लेख पगारा बांध का एक तकनीकी और ढाँचागत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें इसके निर्माण के उद्देश्य, इंजीनियरिंग विशेषताओं और इसके बहुआयामी प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और निर्माण का उद्देश्य

20वीं सदी की शुरुआत में ग्वालियर रियासत, जो अब मध्य प्रदेश का हिस्सा है, एक प्रमुख कृषि क्षेत्र था। हालाँकि, यह क्षेत्र अक्सर मानसून की अनिश्चितताओं और सिंचाई के लिए स्थायी जल स्रोतों की कमी से जूझता था। तत्कालीन सिंधिया राजवंश के प्रशासन ने इस चुनौती को पहचाना और क्षेत्र में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता महसूस की। इसी दूरदर्शी योजना के तहत, वर्ष 1931 में आसन नदी पर पगारा बांध का निर्माण एक रणनीतिक परियोजना के रूप में किया गया। इसका प्राथमिक और एकमात्र उद्देश्य एक विशाल जलाशय का निर्माण करना था जिससे नहरों का एक नेटवर्क विकसित कर मुरैना के हजारों हेक्टेयर शुष्क भूमि तक सिंचाई के लिए पानी पहुँचाया जा सके। यह बांध उस युग की बेहतरीन इंजीनियरिंग क्षमताओं और जल संसाधन प्रबंधन के प्रति सिंधिया प्रशासन की प्रतिबद्धता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

बांध की तकनीकी विशिष्टताएँ और संरचना (Technical Specifications)

पगारा बांध की मज़बूती और प्रभावशीलता इसकी अनूठी संरचनात्मक डिज़ाइन में निहित है। यह एक चिनाई गुरुत्व बांध (Masonry Gravity Dam) है। इस प्रकार के बांध अपने विशाल भार और गुरुत्वाकर्षण बल के माध्यम से पानी के दबाव का प्रतिरोध करते हैं, जो इन्हें अत्यधिक स्थिर और टिकाऊ बनाता है। इसकी प्रमुख तकनीकी विशिष्टताएँ निम्नलिखित हैं:

  • बांध का प्रकार: चिनाई गुरुत्व बांध (Masonry Gravity Dam)
  • नदी: आसन नदी (चंबल की सहायक नदी)
  • जलग्रहण क्षेत्र (Catchment Area): बांध का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 518 वर्ग किलोमीटर है, जहाँ से वर्षा का जल बहकर जलाशय में एकत्रित होता है।
  • कुल लंबाई: 2772 मीटर (लगभग 2.8 किलोमीटर)
  • अधिकतम ऊँचाई: नदी तल से 36.16 मीटर (लगभग 118.6 फीट)
  • पूर्ण जलाशय स्तर (FRL): 199.34 मीटर
  • कुल भराव क्षमता: 54.79 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) या 1935 मिलियन क्यूबिक फीट (MCft)। यह विशाल क्षमता इसे क्षेत्र में पानी का एक विश्वसनीय स्रोत बनाती है।

बांध की खूबी: इसकी इंजीनियरिंग और कार्यात्मकता

पगारा बांध की असली खूबी इसकी इंजीनियरिंग डिज़ाइन और बहुउद्देशीय कार्यात्मकता है, जो दशकों से इस क्षेत्र को लाभान्वित कर रही है। 1. सिंचाई प्रणाली (Irrigation System): पगारा बांध का सबसे महत्वपूर्ण कार्य सिंचाई है। बांध के जल को एक सुनियोजित नहर प्रणाली के माध्यम से आसपास के कृषि क्षेत्रों में वितरित किया जाता है।

  • सिंचित कृषि योग्य क्षेत्र (Culturable Command Area – CCA): इस बांध को 14,040 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • प्रभाव: इस सुनिश्चित सिंचाई सुविधा ने मुरैना जिले की कृषि अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया है। इसने किसानों को पारंपरिक, मानसून-निर्भर फसलों से आगे बढ़कर गेहूँ, सरसों और अन्य नकदी फसलों की खेती करने में सक्षम बनाया है, जिससे उनकी आय और जीवन स्तर में सुधार हुआ है।

2. बाढ़ नियंत्रण (Flood Control): मानसून के दौरान आसन नदी में आने वाली विनाशकारी बाढ़ को नियंत्रित करने में पगारा बांध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • स्पिलवे (Spillway): बांध में एक ‘ओगी’ प्रकार का अनियंत्रित स्पिलवे (Ogee Spillway) है। इसकी खासियत यह है कि जब जलाशय अपने पूर्ण स्तर पर पहुँच जाता है, तो अतिरिक्त पानी बिना किसी मैन्युअल गेट ऑपरेशन के अपने आप स्पिलवे के ऊपर से बहकर नदी में चला जाता है। यह डिज़ाइन भारी बारिश के दौरान बांध की सुरक्षा और निचले इलाकों में अचानक बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए অত্যন্ত प्रभावी है।

3. भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge): बांध द्वारा बनाए गए विशाल जलाशय के कारण, इसके आसपास के एक बड़े क्षेत्र में भूजल का स्तर ऊँचा बना रहता है। पानी जमीन में रिसता है, जिससे आसपास के गाँवों के कुओं और बोरवेल में साल भर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ नहर का पानी सीधे नहीं पहुँच पाता।

रखरखाव और दीर्घकालिक चुनौतियाँ

लगभग एक सदी पुराना होने के कारण, पगारा बांध को कुछ दीर्घकालिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है:

  • गाद जमना (Siltation): समय के साथ नदी के प्रवाह से आई गाद (silt) जलाशय के तल में जमा हो जाती है, जिससे इसकी जल भंडारण क्षमता धीरे-धीरे कम हो सकती है। क्षमता का आकलन करने के लिए नियमित सर्वेक्षण आवश्यक हैं।
  • संरचनात्मक स्वास्थ्य: इतने पुराने चिनाई बांध के संरचनात्मक स्वास्थ्य की नियमित निगरानी महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग द्वारा समय-समय पर इसके रखरखाव और सुरक्षा ऑडिट किए जाते हैं ताकि इसकी मज़बूती और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।

पगारा बांध एक पर्यटक स्थल होने से कहीं बढ़कर, ग्वालियर-मुरैना क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जीवनरेखा है। यह सिंधिया काल की इंजीनियरिंग दूरदर्शिता का एक जीवंत प्रमाण है जिसने एक शुष्क क्षेत्र को एक उपजाऊ कृषि भूमि में बदल दिया। इसकी मज़बूत संरचना, प्रभावी जल प्रबंधन प्रणाली और सिंचाई में अभूतपूर्व योगदान इसे मध्य प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण जल अवसंरचनाओं में से एक बनाते हैं। यह बांध इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे एक सुविचारित बुनियादी ढाँचा परियोजना दशकों तक एक पूरे क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक समृद्धि का आधार बन सकती है।

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नितेश पटेल एक समर्पित पत्रकार और Infra News India के संस्थापक हैं। उन्होंने इस डिजिटल प्लेटफॉर्म की स्थापना भारत में बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं की गहराई से रिपोर्टिंग के उद्देश्य से की। नितेश का लक्ष्य है भारत में चल रही सड़कों, रेलवे, ऊर्जा और शहरी परियोजनाओं से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी को पाठकों तक सरल, विश्वसनीय और तथ्य-आधारित तरीके से पहुँचाना। उनकी लेखनी में तकनीकी समझ, नीतिगत विश्लेषण और आम जनता से जुड़ाव की स्पष्ट झलक मिलती है। वह देश के विकास से संबंधित हर पहलू पर गहरी नजर रखते हैं और इन विषयों पर लगातार शोध और रिपोर्टिंग करते हैं। उनका मानना है कि सूचना का प्रसार ही सशक्त समाज का निर्माण करता है।
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