लखनऊ: कभी देश के पिछड़े इलाकों में गिना जाने वाला पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल, आज विकास की एक नई इबारत लिख रहा है। इस बदलाव की कहानी का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है ‘गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे’। यह सिर्फ कंक्रीट और तारकोल से बनी एक सड़क नहीं है, बल्कि यह इस क्षेत्र के करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं, सपनों और एक बेहतर भविष्य की उम्मीदों का हाईवे है। लगभग 5,877 करोड़ रुपये की लागत से बना यह 91.352 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे, पूर्वांचल के आर्थिक और सामाजिक कायाकल्प की जीवनरेखा बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन के बाद से ही इस एक्सप्रेसवे ने गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों की तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है। यह एक्सप्रेसवे गोरखपुर के जैतपुर गांव (NH-27 के पास) से शुरू होकर आजमगढ़ जिले के सालारपुर गांव में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से जाकर मिलता है, जो आगे लखनऊ, आगरा और फिर यमुना एक्सप्रेसवे के माध्यम से सीधे देश की राजधानी दिल्ली तक का एक तेज और सुगम कॉरिडोर प्रदान करता है।
क्या है गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे और क्यों है यह इतना खास?
यह 4-लेन चौड़ा एक्सप्रेसवे है, जिसे भविष्य में 6-लेन तक विस्तारित करने की योजना है। यह एक ‘एक्सेस-कंट्रोल्ड’ हाईवे है, जिसका अर्थ है कि इस पर यात्रा पूरी तरह से बाधा रहित होती है, जिससे न केवल यात्रा का समय घटता है, बल्कि यह बेहद सुरक्षित भी है। इस परियोजना ने गोरखपुर, संत कबीर नगर, अम्बेडकर नगर और आजमगढ़ जैसे चार प्रमुख जिलों को सीधे तौर पर विकास की मुख्यधारा से जोड़ा है।
इसकी सबसे बड़ी खासियत है समय की बचत:
- गोरखपुर से लखनऊ: पहले जहां इस सफर में 6 से 7 घंटे का समय लगता था, वहीं अब यह दूरी महज 3.5 से 4 घंटे में तय हो जाती है।
- गोरखपुर से दिल्ली: अब दिल्ली तक का सफर 12-14 घंटों के बजाय 8-10 घंटों में पूरा हो रहा है, जो एक क्रांतिकारी बदलाव है।
यह समय की बचत सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। इससे ट्रांसपोर्ट लागत में कमी आई है और व्यापारिक गतिविधियों को नई गति मिली है।
विकास की नई रफ्तार: पूर्वांचल की अर्थव्यवस्था को लगे पंख
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का सबसे बड़ा प्रभाव इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार इस एक्सप्रेसवे के दोनों ओर एक विशाल औद्योगिक गलियारा (Industrial Corridor) विकसित करने की योजना पर तेजी से काम कर रही है। इसके लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। इस गलियारे में खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा, विनिर्माण और लॉजिस्टिक्स से जुड़ी सैकड़ों फैक्ट्रियां और इकाइयां स्थापित की जाएंगी।
इससे न केवल बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित होगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के लाखों नए अवसर पैदा होंगे, जिससे पूर्वांचल से होने वाले पलायन पर रोक लगेगी। अब यहां के युवाओं को काम के लिए बड़े शहरों का रुख नहीं करना पड़ेगा। यह एक्सप्रेसवे “एक जिला, एक उत्पाद” (ODOP) योजना के लिए भी एक बूस्टर का काम कर रहा है, जिससे गोरखपुर के टेराकोटा उत्पादों और अन्य स्थानीय शिल्पों को देश-विदेश के बाजारों तक पहुंचाना आसान हो गया है।
किसानों और स्थानीय उद्योगों के लिए बना वरदान
पूर्वांचल एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। पहले खराब सड़कों और लंबी दूरी के कारण किसानों को अपनी सब्जियां, फल और अनाज बड़ी मंडियों तक पहुंचाने में काफी मुश्किल होती थी, जिससे अक्सर फसल खराब हो जाती थी या उन्हें बिचौलियों को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता था। अब इस एक्सप्रेसवे के माध्यम से किसान अपनी उपज को कुछ ही घंटों में लखनऊ और दिल्ली की मंडियों तक पहुंचा सकते हैं, जिससे उन्हें अपनी मेहनत का सही मूल्य मिल रहा है। इससे उनकी आय में वृद्धि हुई है और जीवन स्तर में सुधार आया है।
आध्यात्मिक त्रिकोण का निर्माण: पर्यटन को मिला नया आयाम
यह एक्सप्रेसवे सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन को भी एक नई ऊंचाई दे रहा है। यह गुरु गोरखनाथ की नगरी गोरखपुर को सीधे भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या और बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी (वाराणसी) से जोड़ता है। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे और अन्य राजमार्गों के नेटवर्क के माध्यम से इन तीनों महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के बीच एक “आध्यात्मिक त्रिकोण” (Spiritual Triangle) का निर्माण हुआ है। इससे इन तीनों शहरों के बीच श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आवाजाही बेहद सुगम हो गई है, जिससे इस क्षेत्र में होटल, परिवहन और अन्य संबंधित व्यवसायों को अभूतपूर्व बढ़ावा मिल रहा है।
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे सिर्फ एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत और एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के उत्तर प्रदेश के संकल्प का एक जीता-जागता प्रमाण है। यह वह हाईवे है, जो पूर्वांचल को पिछड़ेपन के अंधेरे से निकालकर विकास और समृद्धि के एक नए युग में ले जा रहा है।