नई दिल्ली, 5 जून 2025: भारत ने हाल के वर्षों में अपनी वायु रक्षा संरचना (एयर डिफेंस आर्किटेक्चर) को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जो हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान प्रदर्शित हुए। रूस से प्राप्त एस-400 ट्रायम्फ सिस्टम, स्वदेशी आकाशतीर प्रणाली, और उन्नत रडार नेटवर्क के एकीकरण ने भारत को दक्षिण एशिया में एक अग्रणी वायु रक्षा शक्ति के रूप में स्थापित किया है। ये उन्नयन न केवल आधुनिक युद्ध की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किए गए हैं, बल्कि स्वदेशी तकनीक के विकास को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
एस-400: लंबी दूरी की सुरक्षा का प्रतीक
भारत ने 2018 में रूस के साथ 5.43 अरब डॉलर का समझौता कर पांच एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणालियों की खरीद की थी। इनमें से तीन इकाइयां पहले ही तैनात की जा चुकी हैं, और शेष दो इकाइयां 2026 तक भारत पहुंच जाएंगी। यह प्रणाली 400 किलोमीटर की रेंज के साथ विमान, क्रूज मिसाइलों और बैलिस्टिक मिसाइलों को निशाना बना सकती है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, एस-400 ने भारत-पाकिस्तान तनाव में अपनी दक्षता साबित की, जब इसने पाकिस्तानी ड्रोनों और मिसाइलों को प्रभावी ढंग से रोका। रूसी राजदूत रोमन बाबुश्किन ने हाल ही में कहा, “एस-400 ने हाल के संघर्ष में बहुत कुशलता से प्रदर्शन किया।”
आकाशतीर: स्वदेशी तकनीक का गौरव
भारत की स्वदेशी आकाशतीर वायु रक्षा प्रणाली ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी ताकत दिखाई। डीआरडीओ, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), और इसरो द्वारा विकसित, यह एआई-संचालित प्रणाली 300 किलोमीटर की रेंज के साथ ड्रोनों, मिसाइलों और विमानों को नष्ट करने में सक्षम है। आकाशतीर ने कार्टोसैट-3 और रिसैट-2 उपग्रहों, नाविक नेविगेशन सिस्टम, और स्टील्थ ड्रोनों का उपयोग कर पाकिस्तानी हवाई हमलों को नाकाम किया। मेजर-जनरल पवन आनंद (सेवानिवृत्त) ने इसे “भारत की तकनीकी श्रेष्ठता का प्रतीक” बताया।
उन्नत रडार और एकीकृत नेटवर्क
भारत ने पंजाब सेक्टर में एस-400 सिस्टम के साथ-साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास रडार नेटवर्क को अपग्रेड किया है। बेंगलुरु स्थित एक कंपनी द्वारा विकसित सूर्या वीएचएफ रडार, जो स्टील्थ विमानों का पता लगाने में सक्षम है, को भारतीय वायुसेना को आपूर्ति किया गया है। यह 200 करोड़ रुपये की परियोजना का हिस्सा है। इसके अलावा, आकाशतीर प्रणाली में एकीकृत कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आईएसीसीएस) और डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स (डीईडब्ल्यू) ने ड्रोन हमलों को तुरंत नष्ट करने की क्षमता दिखाई।
ऑपरेशन सिंदूर में प्रदर्शन
मई 2025 में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान, भारत की वायु रक्षा प्रणालियों ने 800-900 पाकिस्तानी ड्रोनों को निष्प्रभावी किया। पुराने शीत युद्ध-युग के लो-लेवल एयर डिफेंस (एलएलएडी) सिस्टम को रडार-निर्देशित फायर क्षमता और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल साइट्स के साथ अपग्रेड किया गया, जिसने ड्रोन हमलों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा, “हमने पहले दिन हवाई नुकसान झेले, लेकिन रणनीति में सुधार के बाद हमने पाकिस्तान के हवाई ठिकानों पर सटीक हमले किए।”
प्रोजेक्ट कुशा: भविष्य की तैयारी
भारत अब स्वदेशी प्रोजेक्ट कुशा के तहत एस-400-स्तर की मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित कर रहा है, जिसका 150-350 किलोमीटर रेंज वाला इंटरसेप्टर 2028 तक तैनात होने की उम्मीद है। बीईएल को 40,000 करोड़ रुपये का अनुबंध मिलने की संभावना है। इसके अलावा, पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट, एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को 2035 तक तैयार करने की योजना है, जो भारत की हवाई रक्षा को और मजबूत करेगा।
चुनौतियां और भविष्य
हालांकि भारत की वायु रक्षा में प्रगति प्रभावशाली है, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने स्वदेशी रक्षा परियोजनाओं में देरी पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा, “हमें आज की जरूरतों को आज ही पूरा करना होगा।” फिर भी, भारत का ‘मेक इन इंडिया’ और स्वदेशी डिजाइन पर जोर भविष्य में आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगा।
भारत की उन्नत वायु रक्षा संरचना, जिसमें स्वदेशी और वैश्विक प्रौद्योगिकियों का मिश्रण है, ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी ताकत साबित की। यह न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा नवाचार में अग्रणी बनाता है।