ग्रीन हाइड्रोजन बंदरगाह: क्या भारत वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा शिपिंग क्रांति का नेतृत्व कर सकता है?

Nitesh Patel
By Nitesh Patel 4 Min Read
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6 जून 2025 को, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने नॉर्वे के ओस्लो में नॉरशिपिंग सम्मेलन में भारत के समुद्री क्षेत्र में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की। इस निवेश का एक प्रमुख हिस्सा कांडला, तूतीकोरिन और पारादीप में ग्रीन हाइड्रोजन हब बंदरगाहों के विकास पर केंद्रित है। ये बंदरगाह न केवल भारत के नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य (2070) को समर्थन देंगे, बल्कि वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा शिपिंग क्रांति में भारत को अग्रणी बना सकते हैं। लेकिन क्या भारत वाकई इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कर सकता है? आइए, इसकी संभावनाओं और चुनौतियों पर नजर डालें।

ग्रीन हाइड्रोजन: स्वच्छ ऊर्जा का भविष्य

ग्रीन हाइड्रोजन, जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से उत्पादित होता है, जीरो-कार्बन उत्सर्जन वाला ईंधन है। यह शिपिंग, स्टील और परिवहन जैसे क्षेत्रों को डीकार्बनाइज करने में महत्वपूर्ण है। भारत की नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (2023 में शुरू, 19,744 करोड़ रुपये की लागत) का लक्ष्य 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करना है। कांडला में 1 मेगावाट का प्लांट जुलाई 2025 तक 18 किलोग्राम प्रति घंटा ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन शुरू करेगा, जिसे 10 मेगावाट तक बढ़ाने की योजना है। तूतीकोरिन और पारादीप भी ग्रीन अमोनिया और मेथनॉल जैसे डेरिवेटिव्स के लिए हब बन रहे हैं।

वैश्विक शिपिंग में भारत की भूमिका

भारत के ये बंदरगाह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) और पूर्वी समुद्री गलियारा (EMC) जैसे रणनीतिक व्यापार मार्गों को मजबूत करेंगे। AM ग्रीन और रॉटरडम बंदरगाह के बीच हालिया समझौता (मई 2025) भारत से यूरोप तक 1 मिलियन टन ग्रीन ईंधन की आपूर्ति को सक्षम बनाता है। यह भारत को जापान, कोरिया और यूरोप जैसे क्षेत्रों में कम-कार्बन ऊर्जा निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है। साथ ही, ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाले जहाजों और बंकरिंग सुविधाओं के लिए पायलट प्रोजेक्ट्स भारत को ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर में अग्रणी बना सकते हैं।

हालांकि भारत की महत्वाकांक्षा बड़ी है, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की लागत अभी भी पारंपरिक ईंधन से 1.5 से 6 गुना अधिक है। भारत को 2030 तक 115 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा और 50 अरब लीटर डिमिनरलाइज्ड पानी की आवश्यकता होगी। इसके लिए भारी निवेश, तकनीकी नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है। यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर समायोजन तंत्र जैसे नियामक अंतर भी निर्यात लागत बढ़ा सकते हैं।

फिर भी, भारत के पास अनुकूल परिस्थितियाँ हैं। 2024 तक 223 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (108 गीगावाट सौर, 51 गीगावाट पवन) भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए मजबूत आधार देती है। SIGHT प्रोग्राम के तहत 17,490 करोड़ रुपये के वित्तीय प्रोत्साहन और घरेलू इलेक्ट्रोलिसर निर्माण (3,000 मेगावाट वार्षिक क्षमता) भारत को लागत कम करने में मदद कर रहे हैं।

भारत का वैश्विक नेतृत्व

भारत का ग्रीन हाइड्रोजन मिशन न केवल ऊर्जा स्वतंत्रता की दिशा में कदम है, बल्कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में योगदान भी है। 2030 तक भारत 50 मिलियन मीट्रिक टन CO2 उत्सर्जन कम कर सकता है और 600,000 नौकरियाँ सृजित कर सकता है। कांडला, तूतीकोरिन और पारादीप जैसे बंदरगाह वैश्विक शिपिंग को स्वच्छ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यदि भारत लागत, बुनियादी ढांचा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की चुनौतियों को पार कर ले, तो यह निश्चित रूप से स्वच्छ ऊर्जा शिपिंग क्रांति का नेतृत्व कर सकता है।

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