भारत की सड़कें, ख़ासकर नेशनल हाईवे, देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा हैं। इन सड़कों पर दौड़ते करोड़ों वाहनों में एक बहुत बड़ी संख्या दोपहिया वाहनों, यानी मोटरसाइकिल और स्कूटर की है। ये वाहन करोड़ों भारतीयों के लिए रोज़मर्रा की आवाजाही का सबसे सुलभ और किफायती साधन हैं। अभी तक, भारत के अधिकांश नेशनल हाईवे पर दोपहिया वाहनों को टोल टैक्स से छूट मिली हुई है, लेकिन समय-समय पर यह बहस तेज़ हो जाती है कि क्या उनसे भी टोल वसूला जाना चाहिए।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से भी इस पर कई बार विचार-विमर्श हुआ है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके दो पहलू हैं – एक तरफ देश के इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास है, तो दूसरी तरफ आम आदमी की जेब पर पड़ने वाला बोझ। आइए, इस गंभीर विषय के हर कोण को गहराई से समझते हैं।
क्यों लगना चाहिए टोल? (पक्ष में तर्क)
जो लोग दोपहिया वाहनों पर टोल लगाने का समर्थन करते हैं, वे कुछ ठोस तर्क देते हैं:
1. ‘यूजर पे’ का सिद्धांत (User Pays Principle):
इसका सीधा सा मतलब है कि जो सड़क का इस्तेमाल करेगा, उसे उसके रखरखाव के लिए भुगतान भी करना चाहिए। जब एक बाइक या स्कूटर हाईवे का उपयोग कर रहा है, तो वह भी सड़क के संसाधनों का हिस्सा बन रहा है। इस सिद्धांत के अनुसार, चाहे वाहन छोटा हो या बड़ा, उसे योगदान देना चाहिए।
2. राजस्व में बढ़ोतरी:
भारत में दोपहिया वाहनों की संख्या 21 करोड़ से भी ज़्यादा है। अगर इन सभी से एक छोटी राशि भी टोल के रूप में ली जाए, तो यह सरकारी खजाने के लिए एक बहुत बड़ा राजस्व स्रोत बन सकता है। इस पैसे का इस्तेमाल नई सड़कें बनाने, पुरानी सड़कों की मरम्मत करने और हाईवे पर बेहतर सुविधाएं (जैसे- लाइटिंग, सुरक्षा, और आपातकालीन सेवाएं) देने के लिए किया जा सकता है।
3. सड़कों पर दबाव और अनुशासन:
समर्थकों का यह भी मानना है कि टोल लगने से हाईवे पर गैर-जरूरी यात्राओं में कमी आ सकती है। इससे सड़कों पर भीड़ कम होगी और ट्रैफिक अनुशासन में भी सुधार हो सकता है। हालांकि, यह तर्क थोड़ा कमजोर है, क्योंकि ज़्यादातर दोपहिया चालक ज़रूरत के लिए ही हाईवे का इस्तेमाल करते हैं।
4. समानता का तर्क:
जब कार, बस और ट्रक जैसे सभी वाहन टोल दे रहे हैं, तो दोपहिया वाहनों को छूट क्यों? यह समानता के सिद्धांत के खिलाफ लगता है। एक एकीकृत टोल प्रणाली सभी के लिए समान होनी चाहिए।
टोल क्यों नहीं लगना चाहिए? (विपक्ष में तर्क)
दोपहिया वाहनों को टोल से मुक्त रखने के पक्ष में दिए जाने वाले तर्क कहीं ज़्यादा व्यावहारिक और आम आदमी से जुड़े हुए हैं।
1. आम आदमी की सवारी पर बोझ:
भारत में मोटरसाइकिल या स्कूटर लग्जरी नहीं, बल्कि एक ज़रूरत है। यह एक छात्र, एक डिलीवरी बॉय, एक फैक्ट्री कर्मचारी या एक छोटे किसान के लिए काम पर जाने का एकमात्र साधन है। इन लोगों की आय सीमित होती है। उन पर 50-100 रुपये का टोल भी एक बड़ा आर्थिक बोझ होगा, जो उनके मासिक बजट को बिगाड़ सकता है।
2. सड़क पर टूट-फूट में न्यूनतम हिस्सेदारी:
एक ट्रक या बस की तुलना में एक मोटरसाइकिल का वजन न के बराबर होता है। सड़कों को जो भारी नुकसान पहुंचता है, वह बड़े और भारी कमर्शियल वाहनों के कारण होता है। ऐसे में एक बाइक से उतना ही टोल वसूलना (या कोई भी टोल वसूलना) अन्यायपूर्ण लगता है, क्योंकि सड़क के क्षरण में उसकी भूमिका बहुत कम है।
3. टोल प्लाजा पर लॉजिस्टिक चुनौतियां:
यह सबसे बड़ी व्यावहारिक समस्या है। टोल प्लाजा पर कारों के लिए FASTag की व्यवस्था है, लेकिन मोटरसाइकिलों के लिए इसे लागू करना बेहद मुश्किल है।
- अराजकता का माहौल: अगर बाइक के लिए अलग लेन बनाई जाती है, तो वहां भीड़ और जाम की स्थिति बन जाएगी।
- सुरक्षा का खतरा: बाइक सवार अक्सर कारों के बीच से निकलने की कोशिश करते हैं, जिससे टोल प्लाजा पर दुर्घटना का खतरा बढ़ जाएगा।
- वसूली की लागत: दोपहिया वाहनों से टोल वसूलने के लिए जो सिस्टम और कर्मचारी लगाने पड़ेंगे, उनकी लागत शायद टोल से होने वाली कमाई से भी ज़्यादा हो जाए।
4. ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों पर असर:
नेशनल हाईवे सिर्फ बड़े शहरों को नहीं, बल्कि छोटे कस्बों और गांवों को भी जोड़ते हैं। इन इलाकों में लोग अक्सर छोटे-मोटे कामों के लिए हाईवे के एक छोटे हिस्से का इस्तेमाल करते हैं। उन पर टोल लगाना उनके रोज़मर्रा के जीवन को मुश्किल बना देगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: अन्य देशों का अनुभव
कई देशों में, जैसे जापान और यूरोपीय देशों में, दोपहिया वाहनों पर टोल वसूला जाता है, लेकिन वहां की आय स्तर और बुनियादी ढांचा भारत से बहुत अलग है। उदाहरण के लिए, जापान में मोटरसाइकिलों पर टोल शुल्क लागू है, लेकिन यह वहां की उच्च आय और उन्नत सड़क प्रणाली के अनुरूप है। भारत में, जहां प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है, ऐसी नीति को लागू करना सामाजिक और आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
क्या हो सकता है बीच का रास्ता? (संभावित समाधान)
इस जटिल मुद्दे का समाधान किसी एक पक्ष को चुनने में नहीं, बल्कि एक संतुलित रास्ता निकालने में है। कुछ संभावित समाधान ये हो सकते हैं:
- रियायती दरें: यदि टोल लगाना ही है, तो दरें बहुत कम रखी जाएं। कार के टोल का 10-15% हिस्सा ही दोपहिया वाहनों के लिए निर्धारित किया जा सकता है।
- मासिक या वार्षिक पास: जो लोग रोज़ाना हाईवे का इस्तेमाल करते हैं, उनके लिए बहुत ही कम कीमत पर मासिक या वार्षिक पास की सुविधा दी जा सकती है। इससे उन पर रोज़-रोज़ का बोझ नहीं पड़ेगा।
- एक्सप्रेसवे पर टोल, हाईवे पर छूट: एक सुझाव यह भी है कि केवल उच्च गति वाले एक्सप्रेसवे (जैसे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे) पर ही दोपहिया वाहनों से टोल लिया जाए, जबकि सामान्य नेशनल हाईवे पर उन्हें छूट जारी रखी जाए।
- तकनीक का उपयोग: पारंपरिक टोल प्लाजा की जगह ANPR (ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन) कैमरों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे वाहन बिना रुके निकल जाएंगे और टोल सीधे उनके लिंक किए गए खाते से कट जाएगा। हालांकि, इसके लिए एक मजबूत डेटाबेस और तकनीक की ज़रूरत होगी।
निष्कर्ष: विकास और आम आदमी के बीच संतुलन की चुनौती
दोपहिया वाहनों से टोल वसूलने का मुद्दा केवल राजस्व का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता का भी है। एक तरफ बेहतर सड़कों और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए धन की ज़रूरत है, तो दूसरी तरफ करोड़ों आम भारतीयों की आर्थिक स्थिति है, जिन्हें यह “विकास का बोझ” लग सकता है।
सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले इसके हर पहलू पर गहराई से सोचना होगा। केवल राजस्व बढ़ाने के लक्ष्य से लिया गया फैसला आम जनता में असंतोष पैदा कर सकता है। सबसे अच्छा समाधान वही होगा जो देश के विकास की ज़रूरतों और आम आदमी की जेब के बीच एक नाजुक संतुलन बना सके। यह बहस जारी रहेगी, और इसका अंतिम निर्णय भारत के भविष्य की परिवहन नीति की दिशा तय करेगा।