नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (WDFC) अब अपने अंतिम चरण में पहुँच गया है। सूत्रों से मिली नवीनतम जानकारी के अनुसार, इस विशाल परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम हिस्सा, जो महाराष्ट्र के वैतरणा को जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) से जोड़ता है, लगभग पूरा होने की कगार पर है। इस अंतिम खंड के शुरू होते ही, उत्तर भारत के औद्योगिक केंद्र सीधे देश के सबसे बड़े कंटेनर पोर्ट से जुड़ जाएँगे, जिससे माल ढुलाई के समय और लागत में भारी कमी आएगी।
1506 किलोमीटर लंबा यह कॉरिडोर उत्तर प्रदेश के दादरी से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान, और गुजरात से गुजरते हुए मुंबई के जेएनपीटी बंदरगाह तक जाता है। पिछले कुछ वर्षों में इसके अधिकांश हिस्से चालू हो चुके हैं, लेकिन मुंबई के पास घनी आबादी और जटिल रेलवे नेटवर्क के कारण वैतरणा से जेएनपीटी तक का हिस्सा सबसे चुनौतीपूर्ण था। अब इसके पूरा होने की खबर ने उद्योग जगत में उत्साह की लहर दौड़ा दी है।
बंदरगाह कनेक्टिविटी का आखिरी मील: क्यों है यह इतना खास?
इस परियोजना की सफलता का असली पैमाना बंदरगाह तक इसकी सीधी और निर्बाध पहुँच है। अब तक, मालगाड़ियों को जेएनपीटी तक पहुँचने के लिए मुंबई के व्यस्त उपनगरीय यात्री ट्रेन नेटवर्क का उपयोग करना पड़ता था, जिससे भारी देरी होती थी। कई बार माल को बंदरगाह तक पहुँचने में 2-3 दिन लग जाते थे।
वैतरणा-जेएनपीटी खंड के चालू हो जाने से मालगाड़ियाँ यात्री नेटवर्क को पूरी तरह से बायपास कर सकेंगी। यह “लास्ट-मील कनेक्टिविटी” सुनिश्चित करेगा कि दादरी या एनसीआर क्षेत्र से चलने वाली डबल-स्टैकर कंटेनर ट्रेनें 24 घंटे से भी कम समय में सीधे बंदरगाह तक पहुँच सकें। इससे न केवल निर्यात-आयात व्यापार को गति मिलेगी, बल्कि यह भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
आम आदमी और अर्थव्यवस्था पर इसका क्या होगा असर?
यह सिर्फ एक रेलवे लाइन नहीं है, बल्कि देश की प्रगति का एक नया ट्रैक है। इसके पूरी तरह से चालू होने के कई दूरगामी प्रभाव होंगे:
- तेज डिलीवरी, कम लागत: लॉजिस्टिक्स की लागत घटेगी, जिससे बाजार में उत्पादों की कीमतें कम हो सकती हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों से लेकर निर्माताओं तक, सभी को इसका लाभ मिलेगा।
- यात्री ट्रेनों के लिए राहत: मालगाड़ियों के लिए अलग ट्रैक होने से मौजूदा रेलवे नेटवर्क पर बोझ कम होगा। इससे यात्री ट्रेनें समय पर चल सकेंगी और नई ट्रेनें शुरू करने की गुंजाइश भी बनेगी।
- पर्यावरण का संरक्षण: सड़क मार्ग से ट्रकों की संख्या कम होने से कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी, जो पर्यावरण के लिए एक बड़ी जीत है। एक अनुमान के अनुसार, यह कॉरिडोर लाखों टन कार्बन उत्सर्जन कम करेगा।
- निवेश और रोजगार: कॉरिडोर के किनारे नए औद्योगिक हब, लॉजिस्टिक्स पार्क और गोदाम बनेंगे, जिससे स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का पूर्ण होना केवल रेलवे के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा। यह ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों को दुनिया के बाजारों तक तेजी से पहुँचाने और भारत की आर्थिक विकास दर को एक नई ऊंचाई देने का वादा करता है।